Mir Dagh Dhelvi Shyari in Hindi
मय-ओ-माशूक़
पर्दे पर्दे में आतब अच्छे नहीं
ऐसे अंदाज़-ऐ-हिजाब अच्छे नहीं
मयकदे में हो गए चुप-चाप क्यों
आज कुछ मस्त -ऐ -शराब अच्छे नहीं
ऐ फलक क्या है ज़माने की बिसात
दम -बा -दम के इंक़लाब अच्छे नहीं
तौबा कर लें हम मय-ओ-माशूक़ से
बे -मज़ा हैं ये सवब अच्छे नहीं
इक नजूमी “दाग” से कहता था आज
आप के दिन ऐ जनाब अच्छे नहीं
“दाग ” को और बेवफा कहिये
न रवा कहिये न सज़ा कहिये
कहिए कहिये मुझे बुरा कहिये
दिल में रखने की बात है गम -ऐ -इश्क़
इस को हरगिज़ न बरमला कहिये
वो मुझे क़त्ल कर के कहते हैं
मानता ही न था ये क्या कहिये
आ गई आप को मसीहाई
मरने वालो को मरहबा कहिये
होश उड़ने लगे रक़ीबों के
“दाग ” को और बेवफा कहिये
तखल्लुस दाग़ है
कोई नाम -ओ -निशान पूछे तो आए क़ासिद बता देना
तखल्लुस दाग़ है और आशिक़ों के दिल में रहते हैं …
रंज भी ऐसे उठाये हैं के जी जानता है
लुत्फ़ वो इश्क़ में पाये हैं के जी जानता है
रंज भी ऐसे उठाये हैं के जी जानता है
जो ज़माने के सितम हैं वो ज़माना जाने
तूने दिल इतने सताए हैं के जी जानता है
मुस्कुराते हुए वो मजमा -ऐ -अग्यार के साथ
आज यूँ बज़्म में आये हैं के जी जानता है
काबा -ओ -दीदार में पथरा गयीं दोनों आँखें
ऐसे जलवे नज़र आये हैं के जी जानता है
दोस्ती में तेरी दर -पर्दा हमारे दुश्मन
इस क़दर अपने पराये हैं के जी जानता है
दाग़ -ऐ -वारफता को हम आज तेरे कूचे से
इस तरह खींच के लाये हैं के जी जानता है
तेरे वादे पर सितमगर अभी और सब्र करते
अजब अपना हाल होता जो विसाल-ऐ-यार होता
कभी जान सदके होती कभी दिल निसार होता
न मज़ा है दुश्मनी में न है लुत्फ़ दोस्ती में
कोई गैर गैर होता कोई यार यार होता
यह मज़ा था दिल्लगी का के बराबर आग लगती
न तुम्हें क़रार होता न हमें क़रार होता
तेरे वादे पर सितमगर अभी और सब्र करते
अगर अपनी ज़िन्दगी का हमें ऐतबार होता
न आना तेरा
ले चला जान मेरी रूठ के जाना तेरा
ऐसे आने से तो बेहतर था न आना तेरा
तेरे दिल की बात
यह जो है हुक्म मेरे पास न आए कोई
इस लिए रूठ रहे हैं की मनाये कोई
ताक में है निगाह -ऐ -शौक़ खुदा खैर करे
सामने से मेरे बचता हुआ जाए कोई
हाल अफलाक -ओ -ज़मीं का जो बताया भी तो क्या
बात वो तब है जब तेरे दिल की बताए कोई
आपने ‘दाग ‘ को मूँह भी न लगाया अफ़सोस
उस को रखता था कलेजे से लगाए कोई
हो चुका जश्न-ऐ -जलसा तो मुझे खत भेजा
आप की तरह से मेहमान बुलाये कोई
वो ग़ुलाम किस का था
तुम्हारे खत मैं नया एक सलाम किस का था
न था रक़ीब तो आखिर वो नाम किस का था
वो क़त्ल कर के हर किसी से पूछते हैं
यह काम किस ने किया है ये काम किस का था
वफ़ा करेंगे निभाएंगे बात मानेंगे
तुम्हें भी याद है कुछ यह कमाल किस का था
रहा न दिल मैं वो बे-दर्द और दर्द रहा
मुक़ीम कौन हुआ है मक़ाम किस का था
न पूछ -पाछ थी किसी की न आओ-भगत
तुम्हारी बज़्म में कल एहतमाम किस का था
गुज़र गया वो ज़माना कहें तो किस से कहें
ख्याल मेरे दिल को सुबह -ओ -शाम किस का था
हर एक से कहते हैं क्या “दाग़ ” बेवफा निकला
यह पूछे इनसे कोई वो ग़ुलाम किस का था
तमाम रात हमने क़यामत का इंतज़ार किया
गज़ब किया जो तेरे वादे पे एतबार किया
तमाम रात हमने क़यामत का इंतज़ार किया
न पूछ दिल की हक़ीक़त मगर यह कहतें है
वो बेक़रार रहे जिसने बेक़रार किया
1 Comments
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